भारत प्राचीन काल से ही धार्मिक आस्था और पूजा-उपासना में विश्वास करने वाला देश रहा है. यहां कई धर्म और वर्ग और संस्कृ्तियां अलग – अलग होकर भी एक साथ रहती है. इसके साथ ही भारत में अनेक संत-महापुरुषों ने जन्म लिया. कई संतों के द्वारा किये गये चमत्कार आज भी चर्चा का विषय रहे है.
ऐसे ही एक महापुरुष और संत हैं साईंबाबा. साईंबाबा देश के सबसे महान संत हैं और पूज्यनीय संतों में सर्वोपरी हैं. शिरडी के साईं बाबा के चमत्कारी शक्तियों की बहुत सी कथाएं हैं साथ ही साईं बाबा के भक्तों की संख्या सबसे बहुत ज्यादा है.
साईं व्रत के नियम और विधि
साईंबाबा के पूजन के लिए वीरवार यानि गुरुवार का दिन सर्वोत्तम माना जाता हैं. साईं व्रत कोई भी कर सकतें हैं चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग. ये व्रत कोई भी जाती-पति के भेद भावः बिना कोई भी व्यक्ति कर सकता है. वैसे भी हम सभी जानते हैं कि साईं बाबा जात-पात को नहीं मानते थे और उनका कहना था कि इश्वर एक है.
ये व्रत कोई भी गुरूवार को साईं बाबा का नाम ले कर शुरू किया जा सकता. सुबह या शाम को साईं बाबा के फोटो की पूजा करना किसी आसन पर पीला कपडा बिछा कर उस पर साईं बाबा का फोटो रख कर स्वच्छ पानी से पोछ कर चंदन या कंकु का तिलक लगाना चाहिये और उन पर पीला फूल या हार चढाना चाहिये अगरबत्ती और दीपक जलाकर साईं व्रत की कथा पढ़ना चाहिये और साईं बाबा का स्मरण करना चाहिये और प्रसाद बाटना चाहिये (प्रसाद में कोईभी फलाहार या मिठाई बाटी जा सकती है). अगर सं भव हो तो साईं बाबा के मंदिर में जाकर भक्तिभाव से बाबा के दर्शन करना चाहिए.
शिरडी के साई बाबा के व्रत की संख्या 9 हो जाने पर अंतिम व्रत के दिन पांच गरीब व्यक्तियों को भोजन और सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए. इसके साथ ही साई बाबा की कृ्पा का प्रचार करने के लिये 7, 11, 21 साई पुस्तकें, अपने आस-पास के लोगों में बांटनी चाहिए. इस प्रकार इस व्रत को समाप्त किया जाता है.
साईं व्रत कथा
कोकिला बहन और उनके पति महेशभाई शहर में रहते थे. दोनों में एक-दुसरे के प्रति प्रेम-भाव था, परन्तु महेशभाई का स्वाभाव झगडालू था. बोलने की तमीज ही न थी. लेकिन कोकिला बहन बहुत ही धार्मिक स्त्री थी, भगवान पर विश्वास रखती एवं बिना कुछ कहे सब कुछ सह लेती. धीरे-धीरे उनके पति का धंधा-रोजगार ठप हो गया. कुछ भी कमाई नहीं होती थी. महेशभाई अब दिन-भर घर पर ही रहते और अब उन्होंने गलत राह पकड़ ली. अब उनका स्वभाव पहले से भी अधिक चिडचिडा हो गया.
एक दिन दोपहर का समय था .एक वृद्ध महाराज दरवाजे पर आकार खड़े हो गए. चेहरे पर गजब का तेज था और आकर उन्होंने दल-चावल की मांग की. कोकिला बहन ने दल-चावल दिये और दोनों हाथों से उस वृद्ध बाबा को नमस्कार किया, वृद्ध ने कहा साईं सुखी रखे. कोकिला बहन ने कहा महाराज सुख मेरी किस्मत में नहीं है और अपने दुखी जीवन का वर्णन किया.
महाराज ने श्री साईं के व्रत के बारें में बताया 9 गुरूवार (फलाहार) या एक समय भोजन करना, हो सके तो बेटा साईं मंदिर जाना, घर पर साईं बाबा की 9 गुरूवार पूजा करना, साईं व्रत करना और विधि से उद्यापन करना भूखे को भोजन देना, साईं व्रत की किताबें 7, 11, 21 यथाशक्ति लोगों को भेट देना और इस तरह साईं व्रत का फैलाव करना. साईबाबा तेरी सभी मनोकामना पूर्ण करेंगे, लेकिन साईबाबा पर अटूट श्रद्धा रखना जरुरी है.
कोकिला बहन ने भी गुरुर्वार का व्रत लिया 9 वें गुरूवार को गरीबों को भोजन दिया से व्रत की पुस्तकें भेट दी .उनके घर से झगडे दूर हुए, घर में बहुत ही सुख शांति हो गई, जैसे महेशभाई का स्वाभाव ही बदल गया हो. उनका धंधा-रोजगार फिर से चालू हो गया. थोड़े समय में ही सुख समृधि बढ़ गई. दोनों पति पत्नी सुखी जीवन बिताने लगे एक दिन कोकिला बहन के जेठ जेठानी सूरत से आए. बातों-बातों में उन्होंने बताया के उनके बच्चें पढाई नहीं करते परीक्षा में फ़ेल हो गए है. कोकिला बहन ने 9 गुरूवार की महिमा बताई और कहा कि साईं बाबा के भक्ति से बच्चे अच्छी तरह अभ्यास कर पाएँगे लेकिन इसके लिए साईं बाबा पर विश्वास रखना ज़रूरी है. साईं सबको सहायता करते है. उनकी जेठानी ने व्रत की विधि बताने के लिए कहा. कोकिला बहन ने कहा उन्हें वह सारी बातें बताई जो खुद उन्हें वृद्ध महाराज ने बताई थी.
सूरत से उनकी जेठानी का थोड़े दिनों में पत्र आया कि उनके बच्चे साईं व्रत करने लगे है और बहुत अच्छे तरह से पढ़ते है. उन्होंने भी व्रत किया था और व्रत की किताबें जेठ के ऑफिस में दी थी. इस बारे में उन्होंने लिखा कि उनकी सहेली की बेटी शादी साईं व्रत करने से बहुत ही अच्छी जगह तय हो गई. उनके पडोसी का गहनों का डिब्बा गुम हो गया, अब वह महीने के बाद गहनों का डिब्बा न जाने कहां से वापस मिल गया. ऐसे कई अद्भुत चमत्कार हुए था.
कोकिला बहन ने साईं बाबा की महिमा महान है वह जान लिया था. हे साईं बाबा जैसे सभी लोगों पर प्रसन्न होते है, वैसे हम पर भी होना.
ऐसे ही एक महापुरुष और संत हैं साईंबाबा. साईंबाबा देश के सबसे महान संत हैं और पूज्यनीय संतों में सर्वोपरी हैं. शिरडी के साईं बाबा के चमत्कारी शक्तियों की बहुत सी कथाएं हैं साथ ही साईं बाबा के भक्तों की संख्या सबसे बहुत ज्यादा है.
साईं व्रत के नियम और विधि
साईंबाबा के पूजन के लिए वीरवार यानि गुरुवार का दिन सर्वोत्तम माना जाता हैं. साईं व्रत कोई भी कर सकतें हैं चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग. ये व्रत कोई भी जाती-पति के भेद भावः बिना कोई भी व्यक्ति कर सकता है. वैसे भी हम सभी जानते हैं कि साईं बाबा जात-पात को नहीं मानते थे और उनका कहना था कि इश्वर एक है.
ये व्रत कोई भी गुरूवार को साईं बाबा का नाम ले कर शुरू किया जा सकता. सुबह या शाम को साईं बाबा के फोटो की पूजा करना किसी आसन पर पीला कपडा बिछा कर उस पर साईं बाबा का फोटो रख कर स्वच्छ पानी से पोछ कर चंदन या कंकु का तिलक लगाना चाहिये और उन पर पीला फूल या हार चढाना चाहिये अगरबत्ती और दीपक जलाकर साईं व्रत की कथा पढ़ना चाहिये और साईं बाबा का स्मरण करना चाहिये और प्रसाद बाटना चाहिये (प्रसाद में कोईभी फलाहार या मिठाई बाटी जा सकती है). अगर सं भव हो तो साईं बाबा के मंदिर में जाकर भक्तिभाव से बाबा के दर्शन करना चाहिए.
शिरडी के साई बाबा के व्रत की संख्या 9 हो जाने पर अंतिम व्रत के दिन पांच गरीब व्यक्तियों को भोजन और सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए. इसके साथ ही साई बाबा की कृ्पा का प्रचार करने के लिये 7, 11, 21 साई पुस्तकें, अपने आस-पास के लोगों में बांटनी चाहिए. इस प्रकार इस व्रत को समाप्त किया जाता है.
साईं व्रत कथा
कोकिला बहन और उनके पति महेशभाई शहर में रहते थे. दोनों में एक-दुसरे के प्रति प्रेम-भाव था, परन्तु महेशभाई का स्वाभाव झगडालू था. बोलने की तमीज ही न थी. लेकिन कोकिला बहन बहुत ही धार्मिक स्त्री थी, भगवान पर विश्वास रखती एवं बिना कुछ कहे सब कुछ सह लेती. धीरे-धीरे उनके पति का धंधा-रोजगार ठप हो गया. कुछ भी कमाई नहीं होती थी. महेशभाई अब दिन-भर घर पर ही रहते और अब उन्होंने गलत राह पकड़ ली. अब उनका स्वभाव पहले से भी अधिक चिडचिडा हो गया.
एक दिन दोपहर का समय था .एक वृद्ध महाराज दरवाजे पर आकार खड़े हो गए. चेहरे पर गजब का तेज था और आकर उन्होंने दल-चावल की मांग की. कोकिला बहन ने दल-चावल दिये और दोनों हाथों से उस वृद्ध बाबा को नमस्कार किया, वृद्ध ने कहा साईं सुखी रखे. कोकिला बहन ने कहा महाराज सुख मेरी किस्मत में नहीं है और अपने दुखी जीवन का वर्णन किया.
महाराज ने श्री साईं के व्रत के बारें में बताया 9 गुरूवार (फलाहार) या एक समय भोजन करना, हो सके तो बेटा साईं मंदिर जाना, घर पर साईं बाबा की 9 गुरूवार पूजा करना, साईं व्रत करना और विधि से उद्यापन करना भूखे को भोजन देना, साईं व्रत की किताबें 7, 11, 21 यथाशक्ति लोगों को भेट देना और इस तरह साईं व्रत का फैलाव करना. साईबाबा तेरी सभी मनोकामना पूर्ण करेंगे, लेकिन साईबाबा पर अटूट श्रद्धा रखना जरुरी है.
कोकिला बहन ने भी गुरुर्वार का व्रत लिया 9 वें गुरूवार को गरीबों को भोजन दिया से व्रत की पुस्तकें भेट दी .उनके घर से झगडे दूर हुए, घर में बहुत ही सुख शांति हो गई, जैसे महेशभाई का स्वाभाव ही बदल गया हो. उनका धंधा-रोजगार फिर से चालू हो गया. थोड़े समय में ही सुख समृधि बढ़ गई. दोनों पति पत्नी सुखी जीवन बिताने लगे एक दिन कोकिला बहन के जेठ जेठानी सूरत से आए. बातों-बातों में उन्होंने बताया के उनके बच्चें पढाई नहीं करते परीक्षा में फ़ेल हो गए है. कोकिला बहन ने 9 गुरूवार की महिमा बताई और कहा कि साईं बाबा के भक्ति से बच्चे अच्छी तरह अभ्यास कर पाएँगे लेकिन इसके लिए साईं बाबा पर विश्वास रखना ज़रूरी है. साईं सबको सहायता करते है. उनकी जेठानी ने व्रत की विधि बताने के लिए कहा. कोकिला बहन ने कहा उन्हें वह सारी बातें बताई जो खुद उन्हें वृद्ध महाराज ने बताई थी.
सूरत से उनकी जेठानी का थोड़े दिनों में पत्र आया कि उनके बच्चे साईं व्रत करने लगे है और बहुत अच्छे तरह से पढ़ते है. उन्होंने भी व्रत किया था और व्रत की किताबें जेठ के ऑफिस में दी थी. इस बारे में उन्होंने लिखा कि उनकी सहेली की बेटी शादी साईं व्रत करने से बहुत ही अच्छी जगह तय हो गई. उनके पडोसी का गहनों का डिब्बा गुम हो गया, अब वह महीने के बाद गहनों का डिब्बा न जाने कहां से वापस मिल गया. ऐसे कई अद्भुत चमत्कार हुए था.
कोकिला बहन ने साईं बाबा की महिमा महान है वह जान लिया था. हे साईं बाबा जैसे सभी लोगों पर प्रसन्न होते है, वैसे हम पर भी होना.