Friday, 16 March 2012

श्री साईंबाबा व्रत कथा और पूजन विधि

भारत प्राचीन काल से ही धार्मिक आस्था और पूजा-उपासना में विश्वास करने वाला देश रहा है. यहां कई धर्म और वर्ग और संस्कृ्तियां अलग – अलग होकर भी एक साथ रहती है. इसके साथ ही भारत में अनेक संत-महापुरुषों ने जन्म लिया. कई संतों के द्वारा किये गये चमत्कार आज भी चर्चा का विषय रहे है.



ऐसे ही एक महापुरुष और संत हैं साईंबाबा. साईंबाबा देश के सबसे महान संत हैं और पूज्यनीय संतों में सर्वोपरी हैं. शिरडी के साईं बाबा के चमत्कारी शक्तियों की बहुत सी कथाएं हैं साथ ही साईं बाबा के भक्तों की संख्या सबसे बहुत ज्यादा है.
साईं व्रत के नियम और विधि

साईंबाबा के पूजन के लिए वीरवार यानि गुरुवार का दिन सर्वोत्तम माना जाता हैं. साईं व्रत कोई भी कर सकतें हैं चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग. ये व्रत कोई भी जाती-पति के भेद भावः बिना कोई भी व्यक्ति कर सकता है. वैसे भी हम सभी जानते हैं कि साईं बाबा जात-पात को नहीं मानते थे और उनका कहना था कि इश्वर एक है.



ये व्रत कोई भी गुरूवार को साईं बाबा का नाम ले कर शुरू किया जा सकता. सुबह या शाम को साईं बाबा के फोटो की पूजा करना किसी आसन पर पीला कपडा बिछा कर उस पर साईं बाबा का फोटो रख कर स्वच्छ पानी से पोछ कर चंदन या कंकु का तिलक लगाना चाहिये और उन पर पीला फूल या हार चढाना चाहिये अगरबत्ती और दीपक जलाकर साईं व्रत की कथा पढ़ना चाहिये और साईं बाबा का स्मरण करना चाहिये और प्रसाद बाटना चाहिये (प्रसाद में कोईभी फलाहार या मिठाई बाटी जा सकती है). अगर सं भव हो तो साईं बाबा के मंदिर में जाकर भक्तिभाव से बाबा के दर्शन करना चाहिए.
शिरडी के साई बाबा के व्रत की संख्या 9 हो जाने पर अंतिम व्रत के दिन पांच गरीब व्यक्तियों को भोजन और सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए. इसके साथ ही साई बाबा की कृ्पा का प्रचार करने के लिये 7, 11, 21 साई पुस्तकें, अपने आस-पास के लोगों में बांटनी चाहिए.  इस प्रकार इस व्रत को समाप्त किया जाता है.



साईं व्रत कथा

कोकिला बहन और उनके पति महेशभाई शहर में रहते थे. दोनों में एक-दुसरे के प्रति प्रेम-भाव था, परन्तु महेशभाई का स्वाभाव झगडालू था. बोलने की तमीज ही न थी. लेकिन कोकिला बहन बहुत ही धार्मिक स्त्री थी, भगवान पर विश्वास रखती एवं बिना कुछ कहे सब कुछ सह लेती. धीरे-धीरे उनके पति का धंधा-रोजगार ठप हो गया. कुछ भी कमाई नहीं होती थी. महेशभाई अब दिन-भर घर पर ही रहते और अब उन्होंने गलत राह पकड़ ली. अब उनका स्वभाव पहले से भी अधिक चिडचिडा हो गया.



एक दिन दोपहर का समय था .एक वृद्ध महाराज दरवाजे पर आकार खड़े हो गए. चेहरे पर गजब का तेज था और आकर उन्होंने दल-चावल की मांग की. कोकिला बहन ने दल-चावल दिये और दोनों हाथों से उस वृद्ध बाबा को नमस्कार किया, वृद्ध ने कहा साईं सुखी रखे. कोकिला बहन ने कहा महाराज सुख मेरी किस्मत में नहीं है और अपने दुखी जीवन का वर्णन किया.

महाराज ने श्री साईं के व्रत के बारें में बताया 9 गुरूवार (फलाहार) या एक समय भोजन करना, हो सके तो बेटा साईं मंदिर जाना, घर पर साईं बाबा की 9 गुरूवार पूजा करना, साईं व्रत करना और विधि से उद्यापन करना भूखे को भोजन देना, साईं व्रत की किताबें 7, 11, 21 यथाशक्ति लोगों को भेट देना और इस तरह साईं व्रत का फैलाव करना. साईबाबा तेरी सभी मनोकामना पूर्ण करेंगे, लेकिन साईबाबा पर अटूट श्रद्धा रखना जरुरी है.



कोकिला बहन ने भी गुरुर्वार का व्रत लिया 9 वें गुरूवार को गरीबों को भोजन दिया से व्रत की पुस्तकें भेट दी .उनके घर से झगडे दूर हुए, घर में बहुत ही सुख शांति हो गई, जैसे महेशभाई का स्वाभाव ही बदल गया हो. उनका धंधा-रोजगार फिर से चालू हो गया. थोड़े समय में ही सुख समृधि बढ़ गई. दोनों पति पत्नी सुखी जीवन बिताने लगे एक दिन कोकिला बहन के जेठ जेठानी सूरत से आए. बातों-बातों में उन्होंने बताया के उनके बच्चें पढाई नहीं करते परीक्षा में फ़ेल हो गए है. कोकिला बहन ने 9 गुरूवार की महिमा बताई और कहा कि साईं बाबा के भक्ति से बच्चे अच्छी तरह अभ्यास कर पाएँगे लेकिन इसके लिए साईं बाबा पर विश्वास रखना ज़रूरी है. साईं सबको सहायता करते है. उनकी जेठानी ने व्रत की विधि बताने के लिए कहा. कोकिला बहन ने कहा उन्हें वह सारी बातें बताई जो खुद उन्हें वृद्ध महाराज ने बताई थी.



सूरत से उनकी जेठानी का थोड़े दिनों में पत्र आया कि उनके बच्चे साईं व्रत करने लगे है और बहुत अच्छे तरह से पढ़ते है. उन्होंने भी व्रत किया था और व्रत की किताबें जेठ के ऑफिस में दी थी. इस बारे में उन्होंने लिखा कि उनकी सहेली की बेटी शादी साईं व्रत करने से बहुत ही अच्छी जगह तय हो गई. उनके पडोसी का गहनों का डिब्बा गुम हो गया, अब वह महीने के बाद गहनों का डिब्बा न जाने कहां से वापस मिल गया. ऐसे कई अद्भुत चमत्कार हुए था.



कोकिला बहन ने साईं बाबा की महिमा महान है वह जान लिया था.  हे साईं बाबा जैसे सभी लोगों पर प्रसन्न होते है, वैसे हम पर भी होना.

संतोषी माता की व्रत कथा

एक बुढिया थी जिसके सात बेटे थे. उनमे से छः कमाते थे और एक न कमाने वाला था. वह बुढिया उन छयों को अच्छी रसोई बनाकर बड़े प्रेम से खिलाती पर सातवें को बचा-खुचा झूठन खिलाती थी. परन्तु वह भोला था अतः मन में कुछ भी विचार नहीं करता था. एक दिन वह अपनी पत्नी से बोला – देखो मेरी माता को मुझसे कितना प्रेम है? उसने कहा वह तुम्हें सभी की झूठन खिलाती है, फिर भी तुम ऐसा कहते हो चाहे तो तुम समय आने पर देख सकते हो.



एक दिन बहुत बड़ा त्यौहार आया. बुढिया ने सात प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बनाए. सातवाँ लड़का यह बात जांचने के लिए सिर दुखने का बहाना करके पतला कपडा ओढ़कर सो गया और देखने लगा माँ ने उनको बहुत अच्छे आसनों पर बिठाया और सात प्रकार के भोजन और लड्डू परोसे. वह उन्हें बड़े प्रेम से खिला रही है. जब वे छयो उठ गए तो माँ ने उनकी थालियों से झूठन इकट्ठी की और उनसे एक लड्डू बनाया. फिर वह सातवें लड़के से बोली “अरे रोटी खाले.” वह बोला ‘ माँ मैं भोजन नहीं करूँगा मैं तो परदेश जा रहा हूँ.’ माँ ने कहा – ‘कल जाता है तो आज ही चला जा.’ वह घर से निकल गया. चलते समय उसे अपनी पत्नी की याद आयी जो गोशाला में कंडे थाप रही थी. वह बोला – “हम विदेश को जा रहे है, आएंगे कछु काल. तुम रहियो संतोष से, धरम अपनों पाल.”



इस पर उसकी पत्नी बोली



जाओ पिया आनन्द से, हमारी सोच हटाए.

राम भरोसे हम रहे, ईश्वर तुम्हें सहाय.

देहु निशानी आपणी, देख धरूँ मैं धीर.

सुधि हमारी ना बिसारियो, रखियो मन गंभीर.


इस पर वह लड़का बोला – ‘मेरे पास कुछ नहीं है. यह अंगूठी है सो ले और मुझे भी अपनी कोई निशानी दे दे. वह बोली मेरे पास क्या है? यह गोबर भरे हाथ है. यह कहकर उसने उसकी पीठ पर गोबर भरे हाथ की थाप मार दी. वह लड़का चल दिया. ऐसा कहते है, इसी कारण से विवाह में पत्नी पति की पीठ पर हाथ का छापा मारती है.



चलते समय वह दूर देश में पहुँचा. वह एक व्यापारी की दुकान पर जाकर बोला ‘ भाई मुझे नौकरी पर रख लो.’ व्यापारी को नौकर की जरुरत थी. अतः बोला तन्ख्वाह काम देखकर देंगे. तुम रह जाओ. वह सवेरे ७ बजे से रात की १२ बजे तक नौकरी करने लगा. थोड़े ही दिनों में सारा लेन देन और हिसाब – किताब करने लगा. सेठ के ७ – ८ नौकर चककर खाने लगे. सेठ से उसे दो तीन महीने ने आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया. बारह वर्ष में वह नामी सेठ बन गया और उसका मालिक उसके भरोसे काम छोड़कर कहीं बाहर चला गया.



उधर उसकी औरत को सास और जिठानियाँ बड़ा कष्ट देने लगी. वे उसे लकडी लेने जंगल में भेजती. भूसे की रोटी देती, फूटे नारियल में पानी देती. वह बड़े कष्ट से जीवन बिताती थी. एक दिन जब वह लकडी लेने जा रही थी तो रास्ते में उसने कई औरतों को व्रत करते देखा. वह पूछने लगी – ‘बहनों यह किसका व्रत है, कैसे करते है और इससे क्या फल मिलता है ? तो एक स्त्री बोली ‘ यह संतोषी माता का व्रत है इसके करने से मनोवांछित फल मिलता है, इससे गरीबी, मन की चिंताएँ, राज के मुकद्दमे. कलह, रोग नष्ट होते है और संतान, सुख, धन, प्रसन्नता, शांति, मन पसंद वर मिले व बाहर गये हुए पति के दर्शन होते है.’ उसने उसे व्रत करने की विधि बता दी.

उसने रास्ते में सारी लकडियाँ बेच दी व गुड और चना ले लिया. उसने व्रत करने की तैयारी की. उसने सामने एक मंदिर देखा तो पूछने लगी ‘ यह मंदिर किसका है ?’ वह कहने लगे ‘ यह संतोषी माता का मंदिर है.’ वह मंदिर में गई और माता के चरणों में लोटने लगी. वह दुखी होकर विनती करने लगी ‘माँ ! मैं अज्ञानी हूँ. मैं बहुत दुखी हूँ. मैं तुम्हारी शरण में हूँ. मेरा दुःख दूर करो.’ माता को दया आ गयी. एक शुक्रवार को उसके पति का पत्र आया और अगले शुक्रवार को पति का भेजा हुआ धन मिला. अब तो जेठ जेठानी और सास नाक सिकोड़ के कहने लगे ‘ अब तो इसकी खातिर बढेगी, यह बुलाने पर भी नहीं बोलेगी.’



वह बोली ‘ पत्र और धन आवे तो सभी को अच्छा हैं.’ उसकी आँखों में आंसू आ गये. वह मंदिर में गई और माता के चरणों में गिरकर बोली हे माँ ! मैंने तुमसे पैसा कब माँगा था ? मुझे तो अपना सुहाग चाहिये. मैं तो अपने स्वामी के दर्शन और सेवा करना मांगती हूँ. तब माता ने प्रसन्न होकर कहा – ‘जा बेटी तेरा पति आवेगा.’ वह बड़ी प्रसन्नता से घर गई और घर का काम काज करने लगी. उधर संतोषी माता ने उसके पति को स्वप्न में घर जाने और पत्नी की याद दिलाई. उसने कहा माँ मैं कैसे जाऊँ, परदेश की बात है, लेन – देन का कोई हिसाब नहीं है.’ माँ ने कहा मेरी बात मान सवेरे नहा – धोकर मेरा नाम लेकर घी का दीपक जलाकर दंडवत करके दुकान पर बैठना. देखते देखते सारा लेन – देन साफ़ हो जायेगा. धन का ढेर लग जायेगा.



सवेरे उसने अपने स्वप्न की बात सभी से कही तो सब दिल्लगी उडाने लगे. वे कहने लगे कि कही सपने भी सत्य होते है. पर एक बूढे ने कहा ‘ भाई ! जैसे माता ने कहा है वैसे करने में का डर है ?’ उसने नहा धोकर, माता को दंडवत करने घी का दीपक जलाया और दुकान पर जाकर बैठ जाया. थोडी ही देर में सारा लेन देन साफ़ हो गया, सारा माल बिक गया और धन का ढेर लग गया. वह प्रसन्न हुआ और घर के लिए गहने और सामान वगेरह खरीदने लगा| वह जल्दी ही घर को रवाना हो गया.



उधर बेचारी उसकी पत्नी रोज़ लकडियाँ लेने जाती और रोज़ संतोषी माता की सेवा करती. उसने माता से पूछा – हे माँ ! यह धूल कैसी उड़ रही है ? माता ने कहा तेरा पति आ रहा है. तूं लकडियों के तीन बोझ बना लें. एक नदी के किनारे रख, एक यहाँ रख और तीसरा अपने सिर पर रख ले. तेरे पति के दिल में उस लकडी के गट्ठे को देखकर मोह पैदा होगा. जब वह यहाँ रुक कर नाश्ता पानी करके घर जायेगा, तब तूँ लकडियाँ उठाकर घर जाना और चोक के बीच में गट्ठर डालकर जोर जोर से तीन आवाजें लगाना, ” सासूजी ! लकडियों का गट्ठा लो, भूसे की रोटी दो और नारियल के खोपडे में पानी दो. आज मेहमान कौन आया है ?” इसने माँ के चरण छूए और उसके कहे अनुसार सारा कार्य किया.



वह तीसरा गट्ठर लेकर घर गई और चोक में डालकर कहने लगी “सासूजी ! लकडियों का गट्ठर लो, भूसे की रोटी दो, नारियल के खोपडे में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है ?” यह सुनकर सास बाहर आकर कपट भरे वचनों से उसके दिए हुए कष्टों को भुलाने ले लिए कहने लगी ‘ बेटी ! तेरा पति आया है. आ, मीठा भात और भोजन कर और गहने कपडे पहन.’ अपनी माँ के ऐसे वचन सुनकर उसका पति बाहर आया और अपनी पत्नी के हाथ में अंगूठी देख कर व्याकुल हो उठा. उसने पूछा ‘ यह कौन है ?’ माँ ने कहा ‘ यह तेरी बहू है आज बारह बरस हो गए, यह दिन भर घूमती फिरती है, काम – काज करती नहीं है, तुझे देखकर नखरे करती है. वह बोला ठीक है. मैंने तुझे और इसे देख लिया है, अब मुझे दुसरे घर की चाबी दे दो, मैं उसमे रहूँगा.



माँ ने कहा ‘ ठीक है, जैसी तेरी मरजी.’ और उसने चाबियों का गुच्छा पटक दिया. उसने अपना सामान तीसरी मंजिल के ऊपर के कमरे में रख दिया. एक ही दिन में वे राजा के समान ठाठ – बाठ वाले बन गये. इतने में अगला शुक्रवार आया. बहू ने अपनी पति से कहा – मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है. वह बोला बहुत अच्छा ख़ुशी से कर ले. जल्दी ही उद्यापन की तैयारी करने लगी. उसने जेठ के लड़कों को जीमने के लिए कहा. उन्होंने मान लिया. पीछे से जिठानियों ने अपने बच्चों को सिखादिया ‘ तुम खटाई मांगना जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो.’ लड़कों ने जीम कर खटाई मांगी. बहू कहने लगी ‘ भाई खटाई किसी को नहीं दी जायेगी. यह तो संतोषी माता का प्रसाद है.’ लडके खड़े हो गये और बोले पैसा लाओ| वह भोली कुछ न समझ सकी उनका क्या भेद है| उसने पैसे दे दिये और वे इमली की खटाई मंगाकर खाने लगे. इस पर संतोषी माता ने उस पर रोष किया. राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गये. वह बेचारी बड़ी दुखी हुई और रोती हुई माताजी के मंदिर में गई और उनके चरणों में गिरकर कहने लगी ‘ हे ! माता यह क्या किया ? हँसाकर अब तूँ मुझे क्यों रुलाने लगी ?’ माता बोली पुत्री मुझे दुःख है कि तुमने अभिमान करके मेरा व्रत तोडा है और इतनी जल्दी सब बातें भुला दी. वह कहने लगी – ‘ माता ! मेरा कोई अपराध नहीं है. मुझे तो लड़को ने भूल में दल दिया. मैंने भूल से ही उन्हें पैसे दे दिये. माँ मुझे क्षमा करो मैं दुबारा तुम्हारा उद्यापन करुँगी.’ माता बोली ‘ जा तेरा पति रास्ते में आता हुआ ही मिलेगा.’ उसे रास्ते में उसका पति मिला. उसके पूछने पर वह बोला ‘ राजा ने मुझे बुलाया था ‘ मैं उससे मिलने गया था. वे फिर घर चले गये.



कुछ ही दिन बाद फिर शुक्रवार आया. वह दुबारा पति की आज्ञा से उद्यापन करने लगी. उसने फिर जेठ के लड़को को बुलावा दिया. जेठानियों ने फिर वहीं बात सिखा दी. लड़के भोजन की बात पर फिर खटाई माँगने लगे. उसने कहा ‘ खटाई कुछ भी नहीं मिलेगी आना हो तो आओ.’ यह कहकर वह ब्राह्मणों के लड़को को लाकर भोजन कराने लगी. यथाशक्ति उसने उन्हें दक्षिणा दी. संतोषी माता उस पर बड़ी प्रसन्न हुई, माता की कृपा से नवमे मास में उसके एक चंद्रमा के समान सुन्दर पुत्र हुआ. अपने पुत्र को लेकर वह रोजाना मंदिर जाने लगी.

एक दिन संतोषी माता ने सोचा कि यह रोज़ यहाँ आती है. आजमैं इसके घर चलूँ. इसका सासरा देखूं. यह सोचकर उसने एक भयानक रूप बनाया. गुड व् चने से सना मुख, ऊपर को सूँड के समान होठ जिन पर मक्खियां भिनभिना रही थी. इसी सूरत में वह उसके घर गई. देहली में पाँव रखते ही उसकी सास बोली ‘ देखो कोई डाकिन आ रही है, इसे भगाओ नहीं तो किसी को खा जायेगी.’ लड़के भागकर खिड़की बन्द करने लगे. सातवे लड़के की बहु खिड़की से देख रही थी. वह वही से चिल्लाने लगी ” आज मेरी माता मेरे ही घर आई है.’ यह कहकर उसने बच्चे को दूध पीने से हटाया. इतने में सास बोली ‘ पगली किसे देख कर उतावली हुई है, बच्चे को पटक दिया है.’



इतने में संतोषी माता के प्रताप से वहाँ लड़के ही लड़के नज़र आने लगे. बहू बोली ” सासूजी मैं जिसका व्रत करती हूँ, यह वो ही संतोषी माता हैं. यह कह कर उसने सारी खिड़कियां खोल दी. सबने संतोषी माता के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे – “हे माता ! हम मूर्ख हैं, अज्ञानी है, पापिनी है, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानती, तुम्हारा व्रत भंग कर हमने बहुत बड़ा अपराध किया है. हे जगत माता ! आप हमारा अपराध क्षमा करो.” इस पर माता उन पर प्रसन्न हुई. बहू को जैसा फल दिया वैसा माता सबको दें.

संतोषी माता के व्रत की पूजन विधि

सुख-सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है.



* सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूर्ण कर लें.

स्नानादि के पश्चात घर में किसी सुन्दर व पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.

* माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें. कलश के ऊपर  एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें.

* माता के समक्ष एक घी का दीपक जलाएं.

* माता को अक्षत, फ़ूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें.

* माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगाएँ.

* संतोषी माता की जय बोलकर माता की कथा आरम्भ करें.





इस व्रत को करने वाला कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने हुए चने रखे. सुनने वाला प्रगट ‘संतोषी माता की जय’ इस प्रकार जय जयकार मुख से बोलता जावे. कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड और चना गाय को खिला देवें. कलश के ऊपर रखा गुड और चना सभी को प्रसाद के रूप में बांट देवें. कथा से पहले कलश को जल से भरे और उसके ऊपर गुड व चने से भरा कटोरा रखे. कथा समाप्त होने और आरती होने के बाद कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़कें और बचा हुवा जल तुलसी की क्यारी में सींच देवें. बाज़ार से गुड मोल लेकर और यदि गुड घर में हो तो वही काम में लेकर व्रत करे. व्रत करने वाले को श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न मन से व्रत करना चाहिए.



विशेष: इस दिन व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को ना ही खट्टी चीजें हाथ लगानी चाहिए और ना ही खानी चाहिए.

संतोषी माता का व्रत और पूजन विधि

हम सातो वारों की व्रत कथा के इस अंक में आपको शुक्रवार को किए जाने वाले संतोषी माता के व्रत के बारे में जानकारी दे रहे हैं. संतोषी माता को हिंदू धर्म में संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रुप में पूजा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं. संतोष हमारे जीवन में बहुत जरूरी है. संतोष ना हो तो इंसान मानसिक और शारीरिक तौर पर बेहद कमजोर हो जाता है. संतोषी मां हमें संतोष दिला हमारे जीवन में खुशियों का प्रवाह करती हैं.



माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है. यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है .

Santoshi Mata ki Aarti

Jai Santoshi Mata Lyrics – Santhoshi Maa Aarti Lyrics

Jai Santoshi Mata, Maiya Jay Santoshi Mata,
Apane Sevak Jan Ko,Sukh Sampati Data.
Jai Santoshi Mata



Sundar Chir Sunahari Ma Dharan Kinho,
Hira Panna Damake,Tan Shringar Linho.
Jai Santoshi Mata



Geru Laal Chata Chavi,Badan Kamal Sohe,
Mand Hansat Karunamayi Tribhuvan Jan Mohe.
Jai Santoshi Mata



Svarn Sinhasan Baithi,Chanvar Dhure Pyare ,
Dhup,Dip,Madhumeva,Bhog Dhare Nyare.
Jai Santoshi Mata



Gud Aur Chana Paramapriy,Tame Santosh Kiyo.
Santoshi Kahalai,Bhaktan Vaibhav Diyo.
Jai Santoshi Mata



Shukravar Priy Manat,Aj Divas Sohi .
Bhakt Mandali Chai,Katha Sunat Mohi.
Jai Santoshi Mata



Vinay Jagamag Jyoti, Mangal Dhvani Chai .
Vinay Kare Ham Baalak, Charanan Sir Nai.
Jai Santoshi Mata



Bhakti Bhavamay Puja, Angikrut Kijai .
Jo Man Base Hamare,Ichha Fal Dijai.
Jai Santoshi Mata



Dukhi, Daridri, Rogi, Sankatamukt Kie,
Bahu Dhan-Dhany Bhare Ghar, Sukh Saubhagy Diye.
Jai Santoshi Mata



Dhyan Dharyo Jis Jan Ne, Manavanchit Fal Payo.
Puja Katha Shravan Kar, Ghar Aanand Ayo.
Jai Santoshi Mata



Sharan Gahe Ki Lajja, Rakhiyo Jagadambe,
Sankat Tu Hi Nivare, Dayamayi Ambe.
Jai Santoshi Mata


Saturday, 3 March 2012

Holi 2012

Holi 2012
Thursday, March 8, 2012

The colorful festival of Holi is celebrated on Phalgun Purnima which comes in February end or early March. Holi festival has an ancient origin and celebrates the triumph of 'good' over 'bad'. The colorful festival bridges the social gap and renew sweet relationships. On this day, people hug and wish each other 'Happy Holi'.
Holi celebration begins with lighting up of bonfire on the Holi eve. Numerous legends & stories associated with Holi celebration makes the festival more exuberant and vivid. People rub 'gulal' and 'abeer' on each others' faces and cheer up saying, "bura na maano Holi hai". Holi also gives a wonderful chance to send blessings and love to dear ones wrapped in a special Holi gift.
Holi is a festival that is usually celebrated right after winters. It is celebrated in the month of March-April. The dates vary every year due to the fact that the Hindu calendar is based on solar cycles. This is a colorful festival celebrated with much joy and fervor all over northern India. The most famous Holi is played in Vrindavan-Mathura regions of the state of Uttar Pradesh. So if you are wondering as to when is Holi and want to know the date of Holi in 2012 and other following years, check this list below:
Holi 2012 - 8th March
Holi 2013 - 27th March
Holi 2014 - 17th March
Holi 2015 - 06th March
Holi 2016 - 23th March

There was once a demon king by the name of Hiranyakashyap who won over the kingdom of earth. He was so egoistic that he commanded everybody in his kingdom to worship only him. But to his great disappointment, his son, Prahlad became an ardent devotee of Lord Naarayana and refused to worship his father.

Hiranyakashyap tried several ways to kill his son Prahlad but Lord Vishnu saved him every time. Finally, he asked his sister, Holika to enter a blazing fire with Prahlad in her lap. For, Hiranyakashyap knew that Holika had a boon, whereby, she could enter the fire unscathed.

The Story of Holika and Prahlad

Treacherously, Holika coaxed young Prahlad to sit in her lap and she herself took her seat in a blazing fire. The legend has it that Holika had to pay the price of her sinister desire by her life. Holika was not aware that the boon worked only when she entered the fire alone.
Prahlad, who kept chanting the name of Lord Naarayana all this while, came out unharmed, as the lord blessed him for his extreme devotion.
Thus, Holi derives its name from Holika. And, is celebrated as a festival of victory of good over evil.
Holi is also celebrated as the triumph of a devotee. As the legend depicts that anybody, howsoever strong, cannot harm a true devotee. And, those who dare torture a true devotee of god shall be reduced to ashes.